होली पर गले मिलते दिवाली को गला कांटे कब कौन ब | हिंदी कविता

"होली पर गले मिलते दिवाली को गला कांटे कब कौन बने दुश्मन इसे जान नहीं सकते। हंसते हुए जो मिलते वही हंसी को छीन लेते लग गया जमाना दूसर दोस्ती करके घात करते।। जिसकी हम मदद करते वही मुझे कमजोर करते मैंने जो नैन से देखा उसे भूल नहीं सकते।। सब से सावधान रहिए रहना भी तुमको चाहिए जो चारों तरफ दिख रहा बस उसी पर यकीन करिए।। ©कवि होरी लाल "विनीता""

 होली  पर  गले मिलते
दिवाली को गला कांटे
कब  कौन  बने दुश्मन
इसे  जान नहीं सकते।


हंसते  हुए  जो  मिलते
वही हंसी को छीन लेते
लग गया जमाना दूसर
 दोस्ती करके घात करते।।

जिसकी हम मदद करते
वही मुझे कमजोर करते 
मैंने   जो   नैन  से  देखा
उसे  भूल   नहीं   सकते।।

सब से   सावधान  रहिए
रहना  भी तुमको चाहिए
जो चारों तरफ दिख रहा
बस उसी पर यकीन करिए।।

©कवि होरी लाल "विनीता"

होली पर गले मिलते दिवाली को गला कांटे कब कौन बने दुश्मन इसे जान नहीं सकते। हंसते हुए जो मिलते वही हंसी को छीन लेते लग गया जमाना दूसर दोस्ती करके घात करते।। जिसकी हम मदद करते वही मुझे कमजोर करते मैंने जो नैन से देखा उसे भूल नहीं सकते।। सब से सावधान रहिए रहना भी तुमको चाहिए जो चारों तरफ दिख रहा बस उसी पर यकीन करिए।। ©कवि होरी लाल "विनीता"

लोग हंसी छीन लेते हैं

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