ये जो तुम बैठे हो खयालों में गुम ,
ऐसे अंधेरे में तुम्हें सवालों के जवाब मिल जाते हैं क्या,
जाने क्या सोचकर छोड़ दिया था साथ उस जाने से अजनबी का,
यूं अकेले में बैठ कर वो घाव भर जाते हैं क्या,
जाने क्यूं उन बीते ख्यालों में गुम रहते हो,
यूं बेचैन रहने से वो बीते लम्हे लौट आते हैं क्या,
जो हो गया उसको स्वीकार क्यूं नहीं लेते,
यूं खुद को दोषी ठहराने से,
बीते वक्त के फैसले बदल जाते हैं क्या!!
©Monika Vimal
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