कैसा है ये रंगमंच, जहां खेलते है खेल लोग संग संग।

"कैसा है ये रंगमंच, जहां खेलते है खेल लोग संग संग। ये विशाल विराट मंच, जिसमे नदियां है,झील है,जल है, वृक्ष है,फूल है, गगन है,पर्वत है, खुशबू है, रंग है,रौशनी है। कुछ सजाया है इस खूबसूरती से, जो कल्पनाओं से परे है, मगर अनभिज्ञ है मानव, जो प्रकृति का श्रृंगार है। कौन रस लेता है इन वादियों का? इन वादियों में एक छुपी है खामोशी, कभी सुनो इस खामोशी को, जो गूंज रही है इन वादियों में, खामोशी भी कुछ कहना चाहती है, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं, बनाना चाहती है मित्र, लेकिन कोई ऐसा वीर नही, भूले हुए है हम इस शोर में, दब गई है इस शोर में खामोशी, बैठी है इंतजार में, कभी तो कोई सुनेगा मुझे, कभी बोलती कोयल की आवाज में, कभी गूंजती है कल कल करती झील में, वृक्ष की सरसराहट में,सागर की लहरों में, बारिश की बूंदों में,बादल की गड़गड़ाहट में, कड़कती बिजली में,मगर अफसोस... कोई सुनता नहीं, जो निरंतर बज रही है, खामोशी के सीने में,खामोशी के सीने में... नवीन "कबीर" ©Naveen kabir"

 कैसा है ये रंगमंच,
जहां खेलते है खेल लोग संग संग।
ये विशाल विराट मंच,
जिसमे नदियां है,झील है,जल है,
वृक्ष है,फूल है, गगन है,पर्वत है,
खुशबू है, रंग है,रौशनी है।
कुछ सजाया है इस खूबसूरती से,
जो कल्पनाओं से परे है,
मगर अनभिज्ञ है मानव,
जो प्रकृति का श्रृंगार है।
कौन रस लेता है इन वादियों का?
इन वादियों में एक छुपी है खामोशी,
कभी सुनो इस खामोशी को,
जो गूंज रही है इन वादियों में,
खामोशी भी कुछ कहना चाहती है,
लेकिन कोई सुनने वाला नहीं,
बनाना चाहती है मित्र,
लेकिन कोई ऐसा वीर नही,
भूले हुए है हम इस शोर में,
दब गई है इस शोर में खामोशी,
बैठी है इंतजार में,
कभी तो कोई सुनेगा मुझे,
कभी बोलती कोयल की आवाज में,
कभी गूंजती है कल कल करती झील में,
वृक्ष की सरसराहट में,सागर की लहरों में,
बारिश की बूंदों में,बादल की गड़गड़ाहट में,
कड़कती बिजली में,मगर अफसोस...
कोई सुनता नहीं,
जो निरंतर बज रही है,
खामोशी के सीने में,खामोशी के सीने में...

नवीन "कबीर"

©Naveen kabir

कैसा है ये रंगमंच, जहां खेलते है खेल लोग संग संग। ये विशाल विराट मंच, जिसमे नदियां है,झील है,जल है, वृक्ष है,फूल है, गगन है,पर्वत है, खुशबू है, रंग है,रौशनी है। कुछ सजाया है इस खूबसूरती से, जो कल्पनाओं से परे है, मगर अनभिज्ञ है मानव, जो प्रकृति का श्रृंगार है। कौन रस लेता है इन वादियों का? इन वादियों में एक छुपी है खामोशी, कभी सुनो इस खामोशी को, जो गूंज रही है इन वादियों में, खामोशी भी कुछ कहना चाहती है, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं, बनाना चाहती है मित्र, लेकिन कोई ऐसा वीर नही, भूले हुए है हम इस शोर में, दब गई है इस शोर में खामोशी, बैठी है इंतजार में, कभी तो कोई सुनेगा मुझे, कभी बोलती कोयल की आवाज में, कभी गूंजती है कल कल करती झील में, वृक्ष की सरसराहट में,सागर की लहरों में, बारिश की बूंदों में,बादल की गड़गड़ाहट में, कड़कती बिजली में,मगर अफसोस... कोई सुनता नहीं, जो निरंतर बज रही है, खामोशी के सीने में,खामोशी के सीने में... नवीन "कबीर" ©Naveen kabir

#रंगमंच, #Nature, #Khamoshi

People who shared love close

More like this

Trending Topic