कहा कमी रह गई ✍श्याम सु | हिंदी विचार

"कहा कमी रह गई ✍श्याम सुन्दर बंसल विश्वास करता हूँ आँखों को बंद करके हँस देता हूँ तेरे सामने हर गम भुला के पता नहीं आखिर कहा चुक हो जाती हैं मुझसे शायद मै ही बेवकूफ हुं , सुधरता नहीं ठोकर खाके| सबको अच्छी नज़र से देखता आया हूँ सायद यही मुझसे गलती हो गई तुमको भी मै अच्छा समझता रहा पता नहीं मेरे विश्वास में कहा कमी रह गई | किसी दुसरो की तरह बाते छिपाना आता नही हैं दिल की बाते दबाना आता नही हैं चहे लोगों को बुरा लगे तो लगे मुझको झुठ बरदास्त करना आता नही हैं| मै जैसा बहार दिखता हूँ अंदर से भी वैसा ही रहता हूँ भला को भला बुरा को बुरा बोलता हूँ शायद कोई मुझको समझ सके इतना काबिल बन नहीं सकता और कोई झूठ बोलकर मेरे जीवन में रह नहीं सकता | ©Shyam Bansal"

 कहा कमी रह गई
                           ✍श्याम सुन्दर बंसल

विश्वास करता हूँ आँखों को बंद करके
हँस देता हूँ तेरे सामने हर गम भुला के
पता नहीं आखिर कहा चुक हो जाती हैं मुझसे
शायद मै ही बेवकूफ हुं , सुधरता नहीं ठोकर खाके|

सबको अच्छी नज़र से देखता आया हूँ
सायद यही मुझसे गलती हो  गई 
तुमको भी मै अच्छा समझता रहा
पता नहीं मेरे विश्वास में कहा कमी रह गई  |

किसी दुसरो की तरह बाते छिपाना आता नही हैं
दिल की बाते दबाना आता नही हैं
चहे लोगों को बुरा लगे तो लगे
मुझको झुठ बरदास्त करना आता नही हैं|

मै जैसा बहार दिखता हूँ अंदर से भी वैसा ही रहता हूँ
भला को भला बुरा को बुरा बोलता हूँ
शायद कोई मुझको समझ सके इतना काबिल बन नहीं सकता
और कोई झूठ बोलकर मेरे जीवन में रह नहीं सकता |

©Shyam Bansal

कहा कमी रह गई ✍श्याम सुन्दर बंसल विश्वास करता हूँ आँखों को बंद करके हँस देता हूँ तेरे सामने हर गम भुला के पता नहीं आखिर कहा चुक हो जाती हैं मुझसे शायद मै ही बेवकूफ हुं , सुधरता नहीं ठोकर खाके| सबको अच्छी नज़र से देखता आया हूँ सायद यही मुझसे गलती हो गई तुमको भी मै अच्छा समझता रहा पता नहीं मेरे विश्वास में कहा कमी रह गई | किसी दुसरो की तरह बाते छिपाना आता नही हैं दिल की बाते दबाना आता नही हैं चहे लोगों को बुरा लगे तो लगे मुझको झुठ बरदास्त करना आता नही हैं| मै जैसा बहार दिखता हूँ अंदर से भी वैसा ही रहता हूँ भला को भला बुरा को बुरा बोलता हूँ शायद कोई मुझको समझ सके इतना काबिल बन नहीं सकता और कोई झूठ बोलकर मेरे जीवन में रह नहीं सकता | ©Shyam Bansal

कहा कमी रह गई
✍श्याम सुन्दर बंसल

विश्वास करता हूँ आँखों को बंद करके
हँस देता हूँ तेरे सामने हर गम भुला के
पता नहीं आखिर कहा चुक हो जाती हैं मुझसे
शायद मै ही बेवकूफ हुं , सुधरता नहीं ठोकर खाके|

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