जब गूँजती है सुबह कोयल की मीठी कूक कानों में मेरे | हिंदी विचार

"जब गूँजती है सुबह कोयल की मीठी कूक कानों में मेरे नाम से वो तुम्हारा मुझे बुलाना याद आता है जब पास से गुजरता है हवा का झौंका कोई मुझे तेरी गालों पर वो जुल्फों का लहराना याद आता है जब होता है इश्क़ का जिक्र किसी महफ़िल में तेरा मुझ पर वो मोहब्बतें लुटाना याद आता है हर शाम ढ़लती है जब आहिस्ता आहिस्ता मैं बैठा होता हूँ अपनी छत के किनारे पर तेरा वहां से नीचे कूद कर ना जाने क्यूँ अपनी जान गवाना याद आता है।"

 जब गूँजती है सुबह कोयल की मीठी कूक कानों में 
मेरे नाम से वो तुम्हारा मुझे बुलाना याद आता है
जब पास से गुजरता है हवा का झौंका कोई 
मुझे तेरी गालों पर वो जुल्फों का लहराना याद आता है
जब होता है इश्क़ का जिक्र किसी महफ़िल में 
तेरा मुझ पर वो मोहब्बतें लुटाना याद आता है
हर शाम ढ़लती है जब आहिस्ता आहिस्ता 
मैं बैठा होता हूँ अपनी छत के किनारे पर
तेरा वहां से नीचे कूद कर ना जाने क्यूँ 
अपनी जान गवाना याद आता है।

जब गूँजती है सुबह कोयल की मीठी कूक कानों में मेरे नाम से वो तुम्हारा मुझे बुलाना याद आता है जब पास से गुजरता है हवा का झौंका कोई मुझे तेरी गालों पर वो जुल्फों का लहराना याद आता है जब होता है इश्क़ का जिक्र किसी महफ़िल में तेरा मुझ पर वो मोहब्बतें लुटाना याद आता है हर शाम ढ़लती है जब आहिस्ता आहिस्ता मैं बैठा होता हूँ अपनी छत के किनारे पर तेरा वहां से नीचे कूद कर ना जाने क्यूँ अपनी जान गवाना याद आता है।

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