मनहरण घनाक्षरी:- प्रेम के ही फूल खिले , आओ आप हम म | हिंदी कविता

"मनहरण घनाक्षरी:- प्रेम के ही फूल खिले , आओ आप हम मिले ,  देख फिर तो होली में , प्रीत ही गुलाल है । भूल नहीं आप जाना, कहीं भी हो चले आना, कौन जाने किसका ये , आखिरी ही साल है । पिछली बार होली का , मेरे ही हमजोली का , देख यह पास मेरे , आज भी रुमाल है । स्वप्नों में आयेगा वह , दूर न जायेगा वह , प्रीत में आज भी वह , करता कमाल है ।। २५/०३/२०२४    महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR"

 मनहरण घनाक्षरी:-
प्रेम के ही फूल खिले , आओ आप हम मिले , 
देख फिर तो होली में , प्रीत ही गुलाल है ।
भूल नहीं आप जाना, कहीं भी हो चले आना,
कौन जाने किसका ये , आखिरी ही साल है ।
पिछली बार होली का , मेरे ही हमजोली का ,
देख यह पास मेरे , आज भी रुमाल है ।
स्वप्नों में आयेगा वह , दूर न जायेगा वह ,
प्रीत में आज भी वह , करता कमाल है ।।
२५/०३/२०२४    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मनहरण घनाक्षरी:- प्रेम के ही फूल खिले , आओ आप हम मिले ,  देख फिर तो होली में , प्रीत ही गुलाल है । भूल नहीं आप जाना, कहीं भी हो चले आना, कौन जाने किसका ये , आखिरी ही साल है । पिछली बार होली का , मेरे ही हमजोली का , देख यह पास मेरे , आज भी रुमाल है । स्वप्नों में आयेगा वह , दूर न जायेगा वह , प्रीत में आज भी वह , करता कमाल है ।। २५/०३/२०२४    महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मनहरण घनाक्षरी:-
प्रेम के ही फूल खिले , आओ आप हम मिले , 
देख फिर तो होली में , प्रीत ही गुलाल है ।
भूल नहीं आप जाना, कहीं भी हो चले आना,
कौन जाने किसका ये , आखिरी ही साल है ।
पिछली बार होली का , मेरे ही हमजोली का ,
देख यह पास मेरे , आज भी रुमाल है ।
स्वप्नों में आयेगा वह , दूर न जायेगा वह ,

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