अंतर्मन की सुनो"
हाड़ मांस का पुतला है ये दिल, इससे भी
जाने अनजाने में ,कभी गलतियां हो जाती हैं ।
ऐसा वक्त भी आता है, होश नहीं रहता दिल
को पिघल के सांसें अग्नि शिखा में बह जाती हैं।
ना कोई ग्लानि, न पश्चाताप, मधुर पलों की
चिरस्थाई ,यादें बनकर बस हृदय में रह जाती हैं
दोष नहीं होता उस क्षण का,अकस्मात की
घटना, स्वीकारोक्ति कहती है "अंतर्मन की सुनो"।
©Anuj Ray
# अंतर्मन की सुनो"