फिर समाज के बंधन में मन व्यास की जकड़न दिखे मुझे , | हिंदी कविता Video

"फिर समाज के बंधन में मन व्यास की जकड़न दिखे मुझे , फिर नाम दाम के बहकावे में ये नारी कहीं मरे मिटे... देखो सबसे कहा है मैंने बिटिया मेरी अफ़सर होगी, अब सबको सपने दिखला कर तू तजे राह यह खले मुझे... प्रश्न मेरा बस इतना सा के ये राह अकेले चुनी थी मैं , क्या आया कोई समाज का था जब तंग हालत देख इस b.a में दाख़िल हुई थी मैं... बिटिया मेरी टॉपर है गुणगान सदा था सुना यही , पर science छोड़ जब arts लिया तो परिवार शर्म से झुका यही... दुनिया से मैं क्या लड़ती , मेरी मां को शर्म सी लगती थी , बिटिया B.A में पढ़ती है ये कहने में नजरें झुकती थीं... तब उस वक्त भी मेरी लड़ाई में ये समाज की बातें आगे थीं , B.A से अच्छा तो B.sc था ये तो गंवारों की एक पढ़ाई है... अब उसी arts से आगे बढ़कर जो NET की एक मंजिल पाई है, तो कहते हैं ये सपने सबके थे जो मैंने अपने दम पर रौशनी लाई है... मैं तब भी समाज के विरुद्ध में थी मैं अब भी नहीं समझती कुछ , परिवार की शान सराखों पे पर ये बात मुझे है खटकती कुछ... नहीं चाहिए दुनिया से कुछ बस परिवार साथ दे काफ़ी है , कोई भी नारी सशक्त खड़ी है जब तक वह मां बाप की लाडली है... क्या जवाब मैं दूं समाज को जब ये भय मिटेगा मन दर्पण से, हर बेटी होगी कामयाब मां बाप के देखे सपनों से... ©Deepanshi Srivastava "

फिर समाज के बंधन में मन व्यास की जकड़न दिखे मुझे , फिर नाम दाम के बहकावे में ये नारी कहीं मरे मिटे... देखो सबसे कहा है मैंने बिटिया मेरी अफ़सर होगी, अब सबको सपने दिखला कर तू तजे राह यह खले मुझे... प्रश्न मेरा बस इतना सा के ये राह अकेले चुनी थी मैं , क्या आया कोई समाज का था जब तंग हालत देख इस b.a में दाख़िल हुई थी मैं... बिटिया मेरी टॉपर है गुणगान सदा था सुना यही , पर science छोड़ जब arts लिया तो परिवार शर्म से झुका यही... दुनिया से मैं क्या लड़ती , मेरी मां को शर्म सी लगती थी , बिटिया B.A में पढ़ती है ये कहने में नजरें झुकती थीं... तब उस वक्त भी मेरी लड़ाई में ये समाज की बातें आगे थीं , B.A से अच्छा तो B.sc था ये तो गंवारों की एक पढ़ाई है... अब उसी arts से आगे बढ़कर जो NET की एक मंजिल पाई है, तो कहते हैं ये सपने सबके थे जो मैंने अपने दम पर रौशनी लाई है... मैं तब भी समाज के विरुद्ध में थी मैं अब भी नहीं समझती कुछ , परिवार की शान सराखों पे पर ये बात मुझे है खटकती कुछ... नहीं चाहिए दुनिया से कुछ बस परिवार साथ दे काफ़ी है , कोई भी नारी सशक्त खड़ी है जब तक वह मां बाप की लाडली है... क्या जवाब मैं दूं समाज को जब ये भय मिटेगा मन दर्पण से, हर बेटी होगी कामयाब मां बाप के देखे सपनों से... ©Deepanshi Srivastava

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