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दर्द में सहता रहा हूँ मुस्कराने के लिये
बस तरसता ही रहा हूँ तुम्हे पाने के लिये
फिर रहा दिलपे लिए रंग जख्मो का मैं अपने
हंस के मिलता हूँ तो तुम्हे वो दिखाने के लिये
झुक गया हूँ ज़िन्दगी ,में अब तेरे ही बोझ से
में यहाँ मरता रहा हर बार जीने के लिये
आज भी गम का में दरिया ले के बैठा हूँ यहाँ
मयकदा खुला गम - ऐ - आंसू पीने के लिये
उम्र-ए-रफ्ता कभी भी लौट कर आती नही है
खाब पलती है नजर ता उम्र ढोने के लिये
खो दिया है हौसला खो कर तुझे हमने यहाँ
अब बचा क्या ज़िन्दगी में मुझे खोने के लिये
( लक्ष्मण दावानी ✍ )
21/6/2017
©laxman dawani
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