बोलना चाहती हूँ बहुत कुछ पर कुछ कम में ही रह जाती हूँ।
बचपन से जो भी सिखा सदा में उसे निभाती हूँ।
पैसे तो ज्यादा नहीं हैं पर संस्कार का भंडार है।
उसी एक भंडारे को मैं सब में खूब लुटाती हूँ।
मैं मिडिल क्लास से आती हूँ।
कभी पांच सौ के कपड़े पहनती।
कभी 100 में भी काम चलाती हूँ।
भीड़ नहीं है जीवन में सीमित अपना संसार है।
साल में एक बार McDonald's में बर्गर खाती हूँ
मैं मिडिल क्लास से आती हूँ।
ज्यादा महंगे सौख नहीं है कम में ही निपटाती हूँ।
शनि बाजार से जाकर सैंडल जूते लाती हूँ।
सजने सवरने आता नहीं हमको पर लिपस्टिक लगाने का आता रोज विचार है।
खड़ी आईने के सामने बोल लूं पर भीड़ में घबरा जाती हूँ।
मैं मिडिल क्लास से आती हूँ।
सरकार की सभी योजनाएँ सुनती सब पे ताली बजती हूँ
अच्छे को अच्छा ही बोलो यहीं बात बताती हूँ।
यहाँ पे 80% वाला 30 % से बेकार है ।
आरक्षण के अग्रणियों की सोच पे बरस मैं जाती हूँ।
मैं मिडिल क्लास से आती हूँ।
#yqdidi
#middleclass
#yqbabaबोलना चाहती हूँ बहुत कुछ पर कुछ कम में ही रह जाती हूँ।
बचपन से जो भी सिखा सदा में उसे निभाती हूँ।
पैसे तो ज्यादा नहीं हैं पर संस्कार का भंडार है।
उसी एक भंडारे को मैं सब में खूब लुटाती हूँ।
मैं मिडिल क्लास से आती हूँ।
कभी पांच सौ के कपड़े पहनती।
कभी 100 में भी काम चलाती हूँ।
भीड़ नहीं है जीवन में सीमित अपना संसार है।
साल में एक बार McDonald's में बर्गर खाती हूँ
मैं मिडिल क्लास से आती हूँ।
ज्यादा महंगे सौख नहीं है कम में ही निपटाती हूँ।
शनि बाजार से जाकर सैंडल जूते लाती हूँ।
सजने सवरने आता नहीं हमको पर लिपस्टिक लगाने का आता रोज विचार है।
खड़ी आईने के सामने बोल लूं पर भीड़ में घबरा जाती हूँ।
मैं मिडिल क्लास से आती हूँ।
सरकार की सभी योजनाएँ सुनती सब पे ताली बजती हूँ
अच्छे को अच्छा ही बोलो यहीं बात बताती हूँ।
यहाँ पे 80% वाला 30 % से बेकार है ।
आरक्षण के अग्रणियों की सोच पे बरस मैं जाती हूँ।
मैं मिडिल क्लास से आती हूँ।
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©Priya Singh
बोलना चाहती हूँ बहुत कुछ पर कुछ कम में ही रह जाती हूँ।
बचपन से जो भी सिखा सदा में उसे निभाती हूँ।
पैसे तो ज्यादा नहीं हैं पर संस्कार का भंडार है।
उसी एक भंडारे को मैं सब में खूब लुटाती हूँ।
मैं मिडिल क्लास से आती हूँ।
कभी पांच सौ के कपड़े पहनती।
कभी 100 में भी काम चलाती हूँ।