बादल
आए बादल झूम कर, नाच उठा मन मोर।
मन पंछी नर्तन करे, सुन बादल का शोर।।
घनन घनन गरजे जलद, धूसर श्यामल रूप ।
जा दुबकी सहमी कहीं, तरु फुनगी से धूप।।
शुष्क धरा को सींचने, घन छाए घनघोर।
दादुर चातक बोलते, थिरक रहे हैं मोर ।।
तड़ तड़ बूंँदे गिर रहीं, भीग रहा घर द्वार।
वायु बड़ी शीतल बहे,गर्मी भागी हार।।
धीरे-धीरे भर रहे ,खेत बगीचे ताल।
धान मगन हो रोपते,कृषक धरा के लाल।।
आशा शुक्ला,शाहजहाँपुर,उत्तरप्रदेश
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