एक - दूसरे के बिन तरस जाते थे प्यार में गुस्से से | हिंदी शायरी

"एक - दूसरे के बिन तरस जाते थे प्यार में गुस्से से बरस जाते थे, बहुत चाहत थी दोनों में फिर भी साथ छूट गया समाज के चलते एक और मोहब्ब़त का रिश्ता टूट गया !.. आ गई जात - पात की बात छोड़ना पड़ा समझदारी से मोहब्ब़त का साथ, माँ - बाप की इज्ज़त के ख्याल से पीछे हटना पड़ा रह नहीं पाते थे जो एक - दूसरे के बिन अब उन्हें भी बँटना पड़ा, पकड़ना था जो उम्र भर के लिए हाथ वो जल्द ही छूट गया समाज के चलते एक और मोहब्ब़त का रिश्ता टूट गया !.. ©Ankit Yaduvanshi"

 एक - दूसरे के बिन तरस जाते थे
प्यार में गुस्से से बरस जाते थे,
बहुत चाहत थी दोनों में
फिर भी साथ छूट गया 
समाज के चलते एक और मोहब्ब़त का रिश्ता टूट गया !..

आ गई जात - पात की बात
छोड़ना पड़ा समझदारी से मोहब्ब़त का साथ,
माँ - बाप की इज्ज़त के ख्याल से पीछे हटना पड़ा
रह नहीं पाते थे जो एक - दूसरे के बिन अब उन्हें भी बँटना पड़ा,
पकड़ना था जो उम्र भर के लिए हाथ वो जल्द ही छूट गया 
समाज के चलते एक और मोहब्ब़त का रिश्ता टूट गया !..

©Ankit Yaduvanshi

एक - दूसरे के बिन तरस जाते थे प्यार में गुस्से से बरस जाते थे, बहुत चाहत थी दोनों में फिर भी साथ छूट गया समाज के चलते एक और मोहब्ब़त का रिश्ता टूट गया !.. आ गई जात - पात की बात छोड़ना पड़ा समझदारी से मोहब्ब़त का साथ, माँ - बाप की इज्ज़त के ख्याल से पीछे हटना पड़ा रह नहीं पाते थे जो एक - दूसरे के बिन अब उन्हें भी बँटना पड़ा, पकड़ना था जो उम्र भर के लिए हाथ वो जल्द ही छूट गया समाज के चलते एक और मोहब्ब़त का रिश्ता टूट गया !.. ©Ankit Yaduvanshi

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