यारा नई उमींद लिए,हुई फिर भोर जागृत हुआ जग, खुशि | हिंदी कविता Video

"यारा नई उमींद लिए,हुई फिर भोर जागृत हुआ जग, खुशियाँ चहु ओर। जुटा हर जीव, पथ्य अपना जुटाने क्या शेर जंगल का,क्या पक्षीराज मोर। यारा नई उमींद लिए,हुई फिर भोर। आदमी पशुवत ही जी रहा अब तक नहीं ढूढ़ पाया अब तक मुक्ति की डोर। यारा नई उमींद लिए,हुई फिर भोर। ©Kamlesh Kandpal "

यारा नई उमींद लिए,हुई फिर भोर जागृत हुआ जग, खुशियाँ चहु ओर। जुटा हर जीव, पथ्य अपना जुटाने क्या शेर जंगल का,क्या पक्षीराज मोर। यारा नई उमींद लिए,हुई फिर भोर। आदमी पशुवत ही जी रहा अब तक नहीं ढूढ़ पाया अब तक मुक्ति की डोर। यारा नई उमींद लिए,हुई फिर भोर। ©Kamlesh Kandpal

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