White साहिल भी अब समंदर से दूर जाने लगा हैं।
जबसे सीपियां,मोतियों के भाव बिकने लगी हैं।
लहरों के लाख थपेड़े खाकर रेत वहीं के वहीं हैं।
लेकिन किनारे,कटान के डर से दूर जा खड़े हैं।
ज्वार और भाटा अब लहरों के साथ चलने लगे हैं।
ऐसा देख तूफान भी बीच मजधार में रुकने लगे हैं।
क्या करे अब ए बेचारा समंदर गर्जना कर के।
इसके अंक में अब सबके अरमान पलने लगे हैं।
©डॉ.अजय कुमार मिश्र
समंदर