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महफ़िलो को फिर सजाने आ गये
प्यार की दौलत लुटाने आ गये
वो हटा कर रुख से पर्दा अपने यूँ
जाम नज़रो से पिलाने आ गये
जो किये थे वादे उल्फत में कभी
आज महफ़िल में निभाने आ गये
बन गयी थी जो तमाशा ज़िन्दगी
रंग वो उसमे सजाने आ गये
क्या हँसी इत्तफाक था उस ख्वाब का
जब गले हम को लगाने आ गये
ले रही अंगड़ाई दिल में आरजू
धड़कने दिल की बढ़ाने आ गये
( लक्ष्मण दावानी ✍ )
3/3/2017
©laxman dawani
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