*हां मैं लड़का हूं।।*
तो क्या फर्क पड़ गया अगर मैं रो पड़ा?
हाय! मैं बिचारा तो नहीं।
तो क्या फर्क पड़ गया अगर मैं रो पड़ा?
हाय! मैं असहारा तो नहीं।।
जब मेरे सामने मेरी छोटी बहन विदाई ले रही थी,
तो मैं चाहते हुए भी रो ना पाया।
खुशी के आंसू तो दूर,
गमों को भी भुला ना पाया।।
बचपन से ही समाज ने मुझे सिखाया:
कि लड़का होकर तू क्यों रोता है?
अगर तू रोया,
तो हर समाज का लड़का बेसहारा समझा जाएगा।।
तो क्या फर्क पड़ता है जब मुझे चोट लगती है?
क्योंकि मैं अपने भाव व्यक्त नहीं कर सकता।
हां, मैं लड़का हूं,
रोना मुझे भी आता है,
अगर मैं हंसता भी हूं तो, खुलकर नहीं हस सकता
एक आंसू अगर टपका तो मुझे बेसहारा समझा जाएगा।
दर्द की आवाज़ तो दूर,
खुशी के आंसू भी व्यक्त नहीं कर सकता।।
©KARB E EHSAAS
*हां मैं लड़का हूं।।*
तो क्या फर्क पड़ गया अगर मैं रो पड़ा?
हाय! मैं बिचारा तो नहीं।
तो क्या फर्क पड़ गया अगर मैं रो पड़ा?
हाय! मैं असहारा तो नहीं।।
जब मेरे सामने मेरी छोटी बहन विदाई ले रही थी,