इक हीरा भी पड़े-पड़े पत्थर बन जाता है और इक पत्थर | हिंदी शायरी

"इक हीरा भी पड़े-पड़े पत्थर बन जाता है और इक पत्थर कभी-कभी परवर बन जाता है ये फलसफा जीवन का समझ से परे रहा हरे सपनों का बगीचा क्यों बंजर बन जाता है ©Rakhi Vishwakarma"

 इक हीरा भी पड़े-पड़े पत्थर बन जाता है 
और इक पत्थर कभी-कभी परवर बन जाता है
ये फलसफा जीवन का समझ से परे रहा 
हरे सपनों का बगीचा क्यों बंजर बन जाता है

©Rakhi Vishwakarma

इक हीरा भी पड़े-पड़े पत्थर बन जाता है और इक पत्थर कभी-कभी परवर बन जाता है ये फलसफा जीवन का समझ से परे रहा हरे सपनों का बगीचा क्यों बंजर बन जाता है ©Rakhi Vishwakarma

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