नाईट लाइफ.. महानगरों का यह प्रचलन अब छोटे शहरों | हिंदी Video

" नाईट लाइफ.. महानगरों का यह प्रचलन अब छोटे शहरों और कस्बों को अपनी माया में लपेटने लगा है। धुएं,शराब, कबाब में जीवन बिखरने की जगह ढूंढता है। एक औसत मध्यम वर्गीय व्यक्ति को भी इसका तिलिस्म खींचने लगता है। नशे में देश के युवा युवतियां ही नहीं डूब रहे बल्कि मध्यवर्ती आयु के लोगों को इसने सबसे अधिक बरगलाया है। स्टेट्स ऊंचा दिखाने और आधुनिकी की अंधी दौड़ में व्यक्ति कब इसकी गिरफ्त में घिर जाता है या कहें गिर जाता है उसे पता ही नहीं चलता। अमूमन पब्स बार या हुक्का क्लब में अधिकतम युवतियां कमतर कपड़ो में आती हैं। अपनी बेटी बहन की उम्र की किशोरियों के अधखुले शरीरों को घूरते अधेड़ अपनी जिंदगी का नमक बढ़ाने में भूल चुके हैं कि ये आने वाली पीढ़ी को किस दिशाविहीन कुएं में धक्का दे रहे हैं। दुःख की बात यह है कि ott से फैलती जा रही लीकर की इस नाली में अवयस्क बच्चे भी औंधे मुंह पड़े हैं । ना जाने यह कैसा विकास है शहरों का जहां जगह जगह शराब के कुएं खोदे जा रहे हैं। विदेशी संस्कृति की अंधाधुंध नकल ने हमारे देश के बच्चों को इस कदर भटका दिया है कि मां बाप से नज़र ना मिलाने वाले बच्चे शान से गिलास हाथ में लेकर सेल्फी पोस्ट करने लगे हैं। सरकार नेताओं को बस अपने आबकारी शुल्क से होने वाली आमदनी से लाभ उठाना है। संस्कृति व चरित्र निर्माण की ज़िम्मेदारी से उन्होंने हाथ धो भी लिए हों पर क्या बतौर नागरिक अपने शहर, अपने लोगों, अपने युवा बच्चों के प्रति क्या आपकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं बनती कि इसका विरोध करें। कम से कम वयस्क होने से पहले किसी भी बच्चे को ऐसे पब्स/ हुक्का बार में आने की अनुमति नहीं होनी चाहिए। सारा दोष नई पीढ़ी पर डाल कर हम कुव्यसनों के दुष्प्रभावों को चुपचाप देख रहे हैं जबकि उन्हें नैतिक मूल्य सिखाना हमारी ज़िम्मेदारी है। धर्म के आडंबर ओढ़ते समाज की कलई तब खुलती है जब मघ्यम उम्र के स्त्री पुरूष दुर्व्यसनो के स्वयं शिकार होते हैं, और इसे आधुनिकी और स्टेट्स सिंबल समझते हैं।स्वयं कुमार्ग पर चलने वाले ये दोगले लोग भारत के भविष्य का कैसा निर्माण करेगें ? ©Dhun "

नाईट लाइफ.. महानगरों का यह प्रचलन अब छोटे शहरों और कस्बों को अपनी माया में लपेटने लगा है। धुएं,शराब, कबाब में जीवन बिखरने की जगह ढूंढता है। एक औसत मध्यम वर्गीय व्यक्ति को भी इसका तिलिस्म खींचने लगता है। नशे में देश के युवा युवतियां ही नहीं डूब रहे बल्कि मध्यवर्ती आयु के लोगों को इसने सबसे अधिक बरगलाया है। स्टेट्स ऊंचा दिखाने और आधुनिकी की अंधी दौड़ में व्यक्ति कब इसकी गिरफ्त में घिर जाता है या कहें गिर जाता है उसे पता ही नहीं चलता। अमूमन पब्स बार या हुक्का क्लब में अधिकतम युवतियां कमतर कपड़ो में आती हैं। अपनी बेटी बहन की उम्र की किशोरियों के अधखुले शरीरों को घूरते अधेड़ अपनी जिंदगी का नमक बढ़ाने में भूल चुके हैं कि ये आने वाली पीढ़ी को किस दिशाविहीन कुएं में धक्का दे रहे हैं। दुःख की बात यह है कि ott से फैलती जा रही लीकर की इस नाली में अवयस्क बच्चे भी औंधे मुंह पड़े हैं । ना जाने यह कैसा विकास है शहरों का जहां जगह जगह शराब के कुएं खोदे जा रहे हैं। विदेशी संस्कृति की अंधाधुंध नकल ने हमारे देश के बच्चों को इस कदर भटका दिया है कि मां बाप से नज़र ना मिलाने वाले बच्चे शान से गिलास हाथ में लेकर सेल्फी पोस्ट करने लगे हैं। सरकार नेताओं को बस अपने आबकारी शुल्क से होने वाली आमदनी से लाभ उठाना है। संस्कृति व चरित्र निर्माण की ज़िम्मेदारी से उन्होंने हाथ धो भी लिए हों पर क्या बतौर नागरिक अपने शहर, अपने लोगों, अपने युवा बच्चों के प्रति क्या आपकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं बनती कि इसका विरोध करें। कम से कम वयस्क होने से पहले किसी भी बच्चे को ऐसे पब्स/ हुक्का बार में आने की अनुमति नहीं होनी चाहिए। सारा दोष नई पीढ़ी पर डाल कर हम कुव्यसनों के दुष्प्रभावों को चुपचाप देख रहे हैं जबकि उन्हें नैतिक मूल्य सिखाना हमारी ज़िम्मेदारी है। धर्म के आडंबर ओढ़ते समाज की कलई तब खुलती है जब मघ्यम उम्र के स्त्री पुरूष दुर्व्यसनो के स्वयं शिकार होते हैं, और इसे आधुनिकी और स्टेट्स सिंबल समझते हैं।स्वयं कुमार्ग पर चलने वाले ये दोगले लोग भारत के भविष्य का कैसा निर्माण करेगें ? ©Dhun

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