"White मैं कस्ती मैं दरिया मैं ही पतवार हूं
उलझो मत मुझसे मैं अब अंगार हूं
बंद कमरे में मैंने खुद को तराशा है
वक्त आने पर बता दूंगा पलटवार हूं
जो लिखता हूं पढ़ता हूं सब मेरे तो हैं
जनाब मैं भी पैदाइशी कलमकार हूं
सजाओ बाजार रखो इज्जत ताख पर
मैं भी जनाब कीमत वाला खरीदार हूं
रोज पढ़ते हो प्रशांत और फिर पढ़ोगे
मैं मोहब्बत हूं या मामूली अखबार हूं
©प्रशांत की डायरी
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