शब्द-शब्द हाव-भाव जब बोलती प्रतीत हो।
है दफ़न राज़ जब जो खोलती प्रतीत हो।
प्रीत-रीत गीत-जीत जब बखानता अतीत हो।
अचेतना में चेतना का वास जब अगर कहीं।
समझ लो तभी यही काव्य है वही-वही।
©Bharat Bhushan pathak
#achievement
शब्द-शब्द हाव-भाव जब बोलती प्रतीत हो।
है दफ़न राज़ जब जो खोलती प्रतीत हो।
प्रीत-रीत गीत-जीत जब बखानता अतीत हो।
अचेतना में चेतना का वास जब अगर कहीं।
समझ लो तभी यही काव्य है वही-वही।