"बीमारी के डर से अपने अपने घर से
आसमान को घूर रहे हैं सब
जैसे कोई तन्हा अपनों से जुड़ना चाहता हो
अब तो दिवारे टूटने लगी है मकानों की
जैसे कोई पंछी पिंजरा तोड़ के उड़ना चाहता हो"
बीमारी के डर से अपने अपने घर से
आसमान को घूर रहे हैं सब
जैसे कोई तन्हा अपनों से जुड़ना चाहता हो
अब तो दिवारे टूटने लगी है मकानों की
जैसे कोई पंछी पिंजरा तोड़ के उड़ना चाहता हो