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तोड़कर सब रस्मों की ज़ंजीर को
आज़माये चल ज़रा तक़दीर को।
सौंप दूँ जज़्बात दिल के मैं जिसे,
ढूंढता रहता हूँ दिल की हीर को।
तू अगर क़िस्मत में मेरी जो नहीं
दिल में रक्खूंगा तेरी तस्वीर को।
जग की सारी पोथियां पढ़ लो मगर
कौन पढ़ पाया नयन के नीर को।
"विष्णु" सारा ही जहाँ उसका हुआ
जीत ले जो दिल की इस जागीर को।
©Vishnu Hallu
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