बारिश जहाँ की हमने मोहब्बत की , अफसोस वो बंजर ज़मी | हिंदी Shayari

"बारिश जहाँ की हमने मोहब्बत की , अफसोस वो बंजर ज़मीं थी ..... वो तो मुस्कुरा रहे थे जनाब , आखों में तो हमारी नमीं थी ..... भुला देंगे उसको इस कदर , जैसे लगे कभी ना हमें उसकी कमी थी ..... और कपड़े उतारती होगी मोहब्बत तुम्हारी , हमारी मोहब्बत तो लिबास में ढकी थी×2..... ©Khamosh Alfaaz ( Rinki )"

 बारिश जहाँ की हमने मोहब्बत की , अफसोस वो बंजर ज़मीं थी .....
वो तो मुस्कुरा रहे थे जनाब , आखों में तो हमारी नमीं थी .....
भुला देंगे उसको इस कदर , जैसे लगे कभी ना हमें उसकी कमी थी .....
और कपड़े उतारती होगी मोहब्बत तुम्हारी , हमारी मोहब्बत तो लिबास में ढकी थी×2.....

©Khamosh Alfaaz ( Rinki )

बारिश जहाँ की हमने मोहब्बत की , अफसोस वो बंजर ज़मीं थी ..... वो तो मुस्कुरा रहे थे जनाब , आखों में तो हमारी नमीं थी ..... भुला देंगे उसको इस कदर , जैसे लगे कभी ना हमें उसकी कमी थी ..... और कपड़े उतारती होगी मोहब्बत तुम्हारी , हमारी मोहब्बत तो लिबास में ढकी थी×2..... ©Khamosh Alfaaz ( Rinki )

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