दृष्य के उस पार  जब जब, देखने की लालसा  मन में मचल | हिंदी V

"दृष्य के उस पार  जब जब, देखने की लालसा  मन में मचलती, तब कहीं कविता निकलती, तब कहीं कविता निकलती.... शब्द   के   मोती      सहेजे, भावनाओं की लहर निर्बाध चलती, तब कहीं कविता निकलती, तब कहीं कविता निकलती ... जिन्दगी    तपती  धरा  पर, नित्य  नंगे पांव   नंगी पीठ  जलती, तब कहीं कविता निकलती, तब कहीं कविता निकलती ...।। विजय प्रताप "विजय" ( गोरखपुर, उत्तर प्रदेश )"

दृष्य के उस पार  जब जब, देखने की लालसा  मन में मचलती, तब कहीं कविता निकलती, तब कहीं कविता निकलती.... शब्द   के   मोती      सहेजे, भावनाओं की लहर निर्बाध चलती, तब कहीं कविता निकलती, तब कहीं कविता निकलती ... जिन्दगी    तपती  धरा  पर, नित्य  नंगे पांव   नंगी पीठ  जलती, तब कहीं कविता निकलती, तब कहीं कविता निकलती ...।। विजय प्रताप "विजय" ( गोरखपुर, उत्तर प्रदेश )

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