"यारा सुनो तुम कितना बवाल करती हो
मैं सुनाता हूँ तराने तुम सवाल करती हो
बड़ी गुमसुम बैठी हो क्या बात है बोलो
क्या सोचती हो किसका ख्याल करती हो
अगर हो अहिंसा वादी तो ये बताओ फिर
लोगो को अदाओं से क्यों हलाल करती हो
मैं पढ़ने लगा हूँ अब तेरी चालाकियों को
पूछूं मोहब्बत है तो टलम टाल करती हो
बारिश में बिना चप्पल गलियां नाप लेती हो
बड़ी चंचल हो तुम भी क्या धमाल करती हो
पिछली गली में आशिकों को डांट दिया तुमने
बड़ी गुंडी बनी फिरती हो जी कमाल करती हो
तुम्हारी उँगलियाँ किसी पलती सी बेलों सी
मुस्कुराती हो तो गालों को यूँ गुलाल करती हो
©गौरव आनन्द श्रीवास्तव
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