क्यों ?
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दिल कभी ख़ुद्दार तो कभी, क़र्ज़दार हो जाता है जो सोचा, कभी साकार तो कभी बेक़ार हो जाता है ज़रूरत से ज़्यादा, ख़्वाहिशों से प्यार हो जाता है आईने से ज़्यादा रिश्तों में दरार हो जाता है
कोई मदद किसी के लिए एहसान हो जाता है ये ख़ुदा भी, ख़ुदग़र्ज़ पर ही मेहरबान हो जाता है चंद दौलत की ख़ातिर इंसान, बेईमान हो जाता है दिखावे, झूट के शोर से सादगी-सच, बेजुबान हो जाता है
न चाह कर भी इंसान, इतना मजबूर हो जाता है अरमां पूरा होने पर, गुरूर हो जाता है पल भर की शौहरत से, उम्र भर के लिए उसका सुरूर हो जाता है ग़ैरों के क़रीब आकर अक़्सर शक़्स ख़ुद से, कभी अपनों से दूर हो जाता है
मनीष राज
©Manish Raaj
#क्यों ?