"जब वो ख़ुद ही कहता है मुझ से कि "अजनबी हूॅं मैं"
तो भला किस हक़ से बार-बार किसी अजनबी के दर पर दस्तक दूॅं मैं,
किस हक़ से उसकी बातों का जवाब दूॅं और किसलिए दूॅं मैं ??
यहाॅं तो अपनों को भी अच्छा नहीं लगता आज कल
अपनों का भी बार-बार घर आना।
तो भला किस हक़ से बनता है बार-बार
हमारा किसी अजनबी के दर पर जाना??
©Sh@kila Niy@z
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