White मंजिल दूर थी और मैं तन्हा
वक्त की बूंदें बरस रही बेपनाह
कोई था नहीं कहने को अपना
यथार्थ कटु था और मधुर सपना
मन चाह रहा था बिखरना
जैसे सब खो के कुछ पाना
जो सामने था समझ सके ना
गाए जा रही जिंदगी तराना
मधुर हो या कटु हर हाल था जीना
सीखा दे वक्त मुझे उधड़े ज़ख्म सीना ।।
©NC
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