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रिश्तों का व्यापार होता है हर जगह आजकल
कहीं छुप के तो कहीं खुलेआम होता है ,आजकल
यूं तो इस शहर के लिए अजनबी और नए हैं हम
मगर लग रहा ताल्लुकात है वर्षों का, आजकल
जिम्मेदारी और संघर्ष से ही चल रही है जिंदगी यहां
दो वक्त की रोटी भी मिल रही है मुश्किल से आजकल
बचपन में माता पिता का स्पर्श बहुत था खुशियों के लिए
दो पल की खुशी के लिए तरस रही है जिंदगी आजकल
झोंक दिया है खुद को हमने इस भाग दौड़ की जिंदगी में
मिलता नहीं सुकून अब लग रहा एक पल को भी आजकल
जिम्मेदारियां बढ़ सी गई हैं ,हालत मुश्किल से हैं अब
महंगाई की मार चला रही चक्रव्यू लग रहा है आजकल
यूं बचपन का जमाना भी क्या मस्त सुकून वाला होता था
जिम्मेदारी के बोझ तले जवानी में बुढ़ापा आ गया आजकल
लालच की दुनिया में रह नहीं गया जमाना शराफत का
एक दूसरे के जान का प्यासा इंसान हो रहा है आजकल
©Gaurav Prateek
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