"गुमसुम है कितने जज़्बात मेरे, उस शख्स के खातिर
पहने हैं कई दफा परिवर्तन के लिबास,उस शख्स के खातिर
कहता है फिर भी हम साथ न हो सकेंगे
अब क्या दफ़न ही हो जाऊं,उस शख्स के खातिर ।।"
गुमसुम है कितने जज़्बात मेरे, उस शख्स के खातिर
पहने हैं कई दफा परिवर्तन के लिबास,उस शख्स के खातिर
कहता है फिर भी हम साथ न हो सकेंगे
अब क्या दफ़न ही हो जाऊं,उस शख्स के खातिर ।।