मेरी प्यास गुरु। रविदास गुरु। मेने अपने चरणों कि धूल बनाले गुरु।मेरे रविदास गुरु। मैं थारी भक्ति में इतना चूर होया सूं। खुद ते भी दूर होया सूं। मैं भगत थारा हरिद्वारी। कोई कहे मैंने पागल कोई कहे थारा पुजारी।मेरी आस गुरु रविदास गुरु।रहवे सिर पै थारा हाथ गुरु। हरिद्वारी
©Sudhir Rahi
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