दिल के पुराने “इल्ज़ाम-ए-मर्ज़”ने अभी रुखसत भी नही | हिंदी

"दिल के पुराने “इल्ज़ाम-ए-मर्ज़”ने अभी रुखसत भी नहीं ली और तुमने उसपे नए इल्ज़ामात की पट्टी चढ़ा दी कि क्या कहते हो.......?? हर बार गलती मेरी है , तो , सुनो ना जाना कभी अपने अंदर भी झांको ना यूं तो इलज़ाम लगाना अच्छा लगता है , मगर कभी खुद महसूस करो ना जाना । ©Nazish Khan"

 दिल के पुराने “इल्ज़ाम-ए-मर्ज़”ने अभी रुखसत भी नहीं ली
और तुमने उसपे नए इल्ज़ामात की पट्टी चढ़ा दी 
कि क्या कहते हो.......??
हर बार गलती मेरी है ,
तो , सुनो ना जाना कभी अपने अंदर भी झांको ना 
यूं तो इलज़ाम लगाना अच्छा लगता है ,
मगर कभी खुद महसूस करो ना जाना ।

©Nazish Khan

दिल के पुराने “इल्ज़ाम-ए-मर्ज़”ने अभी रुखसत भी नहीं ली और तुमने उसपे नए इल्ज़ामात की पट्टी चढ़ा दी कि क्या कहते हो.......?? हर बार गलती मेरी है , तो , सुनो ना जाना कभी अपने अंदर भी झांको ना यूं तो इलज़ाम लगाना अच्छा लगता है , मगर कभी खुद महसूस करो ना जाना । ©Nazish Khan

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