शब्द किसीकी जागीर नही होते वे पिघल जाते हैं ज़ेहन क | मराठी कविता

"शब्द किसीकी जागीर नही होते वे पिघल जाते हैं ज़ेहन के लावे में ये जो कतरा कतरा जिनगी है न इसे अक़्सर पी जाते हैं हम बेमौसम बारिशों में पता है क्यों? क्योंकि प्यास अधूरी नही रहती ज़िन्दगी चलती रहती है एक नमी लिए ये जो हम कहते हैं न की शब्द गुम हो जाते हैं तो सुनो यह गुम नही होते वे ठहर माया करते हैं हम सबकी आंखों में कभी मेरे तो क़भी आपकी आंखों मर सुनो न देव शब्द किसीकी जागीर नही होते हैं ©स्वरा"

 शब्द किसीकी जागीर नही होते
वे पिघल जाते हैं ज़ेहन के
लावे में
ये जो कतरा कतरा जिनगी है न
इसे अक़्सर पी जाते हैं हम
बेमौसम बारिशों में
पता है क्यों?
क्योंकि प्यास अधूरी नही रहती
ज़िन्दगी चलती रहती है
एक नमी लिए
ये जो हम कहते हैं न
की शब्द गुम हो जाते हैं
तो सुनो यह  गुम नही होते
वे ठहर माया करते हैं
हम सबकी आंखों में
कभी मेरे तो क़भी आपकी आंखों मर
सुनो न देव 
 शब्द किसीकी जागीर नही होते हैं

©स्वरा

शब्द किसीकी जागीर नही होते वे पिघल जाते हैं ज़ेहन के लावे में ये जो कतरा कतरा जिनगी है न इसे अक़्सर पी जाते हैं हम बेमौसम बारिशों में पता है क्यों? क्योंकि प्यास अधूरी नही रहती ज़िन्दगी चलती रहती है एक नमी लिए ये जो हम कहते हैं न की शब्द गुम हो जाते हैं तो सुनो यह गुम नही होते वे ठहर माया करते हैं हम सबकी आंखों में कभी मेरे तो क़भी आपकी आंखों मर सुनो न देव शब्द किसीकी जागीर नही होते हैं ©स्वरा

#सुनो न देव

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