तू कभी बिछड़ा नहीं और तू मिला भी नहीं पर मुझे तुझस | हिंदी शायरी

"तू कभी बिछड़ा नहीं और तू मिला भी नहीं पर मुझे तुझसे कोई शिकवा नहीं, ग़िला भी नहीं.. तू भले मुझसे ख़फ़ा है और तू दूर भी है. मगर तुझसे ऐ दोस्त दिल को फ़ासला भी नहीं.. मै कैसे दिखलाऊं तुझको दिल की सच्चाई. एक अरसे से तू मुझसे गले मिला भी नहीं.. वो एक वक़्त था जब दिल से दिल मिले थे यहाँ ये एक वक़्त है बातों का सिलसिला भी नहीं.. तू मुझे कुछ समझ मुझको तो तुझसे प्यार है दोस्त तुझ सा कोई ढ़ूंढ़ा नहीं और मिला भी नहीं मुझे पता है मुझ में लाख कमी हैं शायद. ये बेरुख़ी मगर दोस्ती का सिला भी नहीं कभी कभी मुझे लगता है कि भूल जाँऊं तुझे मगर ये सच है मुझमें भूलने का हौंसला भी नहीं तू खुश रहे ये दुआ मैं तेरी कसम रोज़ करता हूँ. और अपने ग़म का मुझे अब कोई ग़िला भी नहीं बस इक उम्मीद है तुझ को गले लगाऊँ कभी कि वो एहसास मुझे फ़िर कहीं मिला भी नहीं.. ओमा राम चौधरी ©Oma Ram Choudhary"

 तू कभी बिछड़ा नहीं और तू मिला भी नहीं
पर मुझे तुझसे कोई शिकवा नहीं, ग़िला भी नहीं..

तू भले मुझसे ख़फ़ा है और तू दूर भी है.
मगर तुझसे ऐ दोस्त दिल को फ़ासला भी नहीं..

मै कैसे दिखलाऊं तुझको दिल की सच्चाई.
एक अरसे से तू मुझसे गले मिला भी नहीं..

वो एक वक़्त था जब दिल से दिल मिले थे यहाँ
ये एक वक़्त है बातों का सिलसिला भी नहीं..

तू मुझे कुछ समझ मुझको तो तुझसे प्यार है दोस्त
तुझ सा कोई ढ़ूंढ़ा नहीं और मिला भी नहीं

मुझे पता है मुझ में लाख कमी हैं शायद.
ये बेरुख़ी मगर दोस्ती का सिला भी नहीं

कभी कभी मुझे लगता है कि भूल जाँऊं तुझे
मगर ये सच है मुझमें भूलने का हौंसला भी नहीं

तू खुश रहे ये दुआ मैं तेरी कसम रोज़ करता हूँ.
और अपने ग़म का मुझे अब कोई ग़िला भी नहीं

बस इक उम्मीद है तुझ को गले लगाऊँ कभी
कि वो एहसास मुझे फ़िर कहीं मिला भी नहीं..

                                                                   ओमा राम चौधरी

©Oma Ram Choudhary

तू कभी बिछड़ा नहीं और तू मिला भी नहीं पर मुझे तुझसे कोई शिकवा नहीं, ग़िला भी नहीं.. तू भले मुझसे ख़फ़ा है और तू दूर भी है. मगर तुझसे ऐ दोस्त दिल को फ़ासला भी नहीं.. मै कैसे दिखलाऊं तुझको दिल की सच्चाई. एक अरसे से तू मुझसे गले मिला भी नहीं.. वो एक वक़्त था जब दिल से दिल मिले थे यहाँ ये एक वक़्त है बातों का सिलसिला भी नहीं.. तू मुझे कुछ समझ मुझको तो तुझसे प्यार है दोस्त तुझ सा कोई ढ़ूंढ़ा नहीं और मिला भी नहीं मुझे पता है मुझ में लाख कमी हैं शायद. ये बेरुख़ी मगर दोस्ती का सिला भी नहीं कभी कभी मुझे लगता है कि भूल जाँऊं तुझे मगर ये सच है मुझमें भूलने का हौंसला भी नहीं तू खुश रहे ये दुआ मैं तेरी कसम रोज़ करता हूँ. और अपने ग़म का मुझे अब कोई ग़िला भी नहीं बस इक उम्मीद है तुझ को गले लगाऊँ कभी कि वो एहसास मुझे फ़िर कहीं मिला भी नहीं.. ओमा राम चौधरी ©Oma Ram Choudhary

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