फिर अश्कों के समंदर उबालें बैठे है, कुछ यादे अब भी | हिंदी कविता

"फिर अश्कों के समंदर उबालें बैठे है, कुछ यादे अब भी सम्भाले बैठे है। कि घर उसका बसाने के चक्कर मे, यहाँ खुद को घर से निकाले बैठे है। जहर देके हमे वो क्या खाक मारेंगे, हम खुद के घरों मे नाग पाले बैठे है। तकाज़ा उम्र का तुम इसी से लगा लो, सफेद बाल को किए काले बैठे है। अंधेरा घर को उसके छुएगा कैसे, जो पूरे जग मे किए उजाले बैठे है। साकी से अब मेरा कोई वास्ता नहीं, हम खुद ही हाथ लिए प्याले बैठे है। ©NanduVistar"

 फिर अश्कों के समंदर उबालें बैठे है,
कुछ यादे अब भी सम्भाले बैठे है।

कि घर उसका बसाने के चक्कर मे,
यहाँ खुद को घर से निकाले बैठे है।

जहर देके हमे वो क्या खाक मारेंगे,
हम खुद के घरों मे नाग पाले बैठे है।

तकाज़ा उम्र का तुम इसी से लगा लो,
सफेद बाल को किए काले बैठे है।

अंधेरा घर को उसके छुएगा कैसे,
जो पूरे जग मे किए उजाले बैठे है।

साकी से अब मेरा कोई वास्ता नहीं,
हम खुद ही हाथ लिए प्याले बैठे है।

©NanduVistar

फिर अश्कों के समंदर उबालें बैठे है, कुछ यादे अब भी सम्भाले बैठे है। कि घर उसका बसाने के चक्कर मे, यहाँ खुद को घर से निकाले बैठे है। जहर देके हमे वो क्या खाक मारेंगे, हम खुद के घरों मे नाग पाले बैठे है। तकाज़ा उम्र का तुम इसी से लगा लो, सफेद बाल को किए काले बैठे है। अंधेरा घर को उसके छुएगा कैसे, जो पूरे जग मे किए उजाले बैठे है। साकी से अब मेरा कोई वास्ता नहीं, हम खुद ही हाथ लिए प्याले बैठे है। ©NanduVistar

@kirti Panchal @Nidhi Singh @Bharti Sharma @Ritu Tiwari @PUNITA SHARMA

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