चुप à&

"चुप थे अब सब कुछ ठीक करना चाहती हूं मैं इन आंसुओं को पोछ मुस्कुराना चाहती हूं मैं इन विरानियों से दूर फिर महफिल में गाना चाहती हूं मैं खुशियों के जहां में अपना आशियाना सजाना चाहती हूं मैं हर वादे से आजाद हर बेड़ी हर बंदीशो को तोड़ना चाहती हूं मैं अब मुस्कुराना चाहती हूं मैं हर एक कदम अपनी और बढ़ाना चाहती हूं मैं इन तन्हाइयों से निकाल सागर की लहरों संग शोर मचाना चाहती हूं मैं खुद में जीना खुद में मरना चाहती हूं मैं अब इस मतलब की दुनिया से दूर खुद से मोहब्बत करना चाहती हूं मैं हां अब जीना चाहती हूं मैं ©Kavita Varesha "

चुप थे अब सब कुछ ठीक करना चाहती हूं मैं इन आंसुओं को पोछ मुस्कुराना चाहती हूं मैं इन विरानियों से दूर फिर महफिल में गाना चाहती हूं मैं खुशियों के जहां में अपना आशियाना सजाना चाहती हूं मैं हर वादे से आजाद हर बेड़ी हर बंदीशो को तोड़ना चाहती हूं मैं अब मुस्कुराना चाहती हूं मैं हर एक कदम अपनी और बढ़ाना चाहती हूं मैं इन तन्हाइयों से निकाल सागर की लहरों संग शोर मचाना चाहती हूं मैं खुद में जीना खुद में मरना चाहती हूं मैं अब इस मतलब की दुनिया से दूर खुद से मोहब्बत करना चाहती हूं मैं हां अब जीना चाहती हूं मैं ©Kavita Varesha

#PoetInYou चुप थे
अब कुछ कहना चाहते है हम

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