आज दर्द सब झेल लेते हैं,
शायद कब्र लाजवाब होगी।
आज बैचेनी ही बैचेनी है,
शायद कब्र में पुरसुकूँ लेटूँ।
इल्म मुहब्बत जो,
सिखाते हैं जहाँवाले,
वो नफ़रतों की ,
कई किताब पढ़ बैठे हैं।
©Bharat Bhushan pathak
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आज दर्द सब झेल लेते हैं,
शायद कब्र लाजवाब होगी।
आज बैचेनी ही बैचेनी है,
शायद कब्र में पुरसुकूँ लेटूँ।
इल्म मुहब्बत सिखाते हैं,
जो जहाँ वाले।