कश्ती थी किनरा था सफर भी हमारा था उस अंजान शहर मै | हिंदी Poetry

"कश्ती थी किनरा था सफर भी हमारा था उस अंजान शहर मैं एक घर भी हमारा था मुसाफिर की तरह गुजरी ज़िन्दगी रास्तो पर न चाहते हुए भी वहाँ पर बसर भी हमारा था सौरभ श्रीवास्तव "निराला""

 कश्ती थी किनरा था सफर भी हमारा था 
उस अंजान शहर मैं एक घर भी हमारा था 

मुसाफिर की तरह गुजरी ज़िन्दगी रास्तो पर 
न चाहते हुए भी वहाँ पर बसर भी हमारा था  
सौरभ श्रीवास्तव "निराला"

कश्ती थी किनरा था सफर भी हमारा था उस अंजान शहर मैं एक घर भी हमारा था मुसाफिर की तरह गुजरी ज़िन्दगी रास्तो पर न चाहते हुए भी वहाँ पर बसर भी हमारा था सौरभ श्रीवास्तव "निराला"

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