अनजान प्रदेश में, निर्जन पथ पर, सुनशान राह में, बै | हिंदी कविता

"अनजान प्रदेश में, निर्जन पथ पर, सुनशान राह में, बैठी शिला पर। जाऊं किस राह, हैं कश्मकश में, जो छूट गई मंजिले, उनका गम न कर। निराश न मन को कर, उठ नई इबारत लिखने को। उन्हें भूल नई पाने को, ©BS NEGI"

 अनजान प्रदेश में, निर्जन पथ पर,
सुनशान राह में, बैठी शिला पर।
जाऊं किस राह, हैं कश्मकश में,
जो छूट गई मंजिले, उनका गम न कर।
निराश न मन को कर,
उठ नई इबारत लिखने को।
 उन्हें भूल नई पाने को,

©BS NEGI

अनजान प्रदेश में, निर्जन पथ पर, सुनशान राह में, बैठी शिला पर। जाऊं किस राह, हैं कश्मकश में, जो छूट गई मंजिले, उनका गम न कर। निराश न मन को कर, उठ नई इबारत लिखने को। उन्हें भूल नई पाने को, ©BS NEGI

नई इबारत

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