White वो जो भय था, अब जी लिया। जो कुछ भी, नहीं होन | हिंदी Poetry

"White वो जो भय था, अब जी लिया। जो कुछ भी, नहीं होना चाहिए था, अच्छा हुआ, वैसा कुछ भी नहीं हुआ। एक अंधेरी, कैद से, मुक्त हुआ हूं आज। बहुत दिन बाद, आज थोड़ी खुशी मिली मैं जी भर के जी लिया। अब नहीं पड़ेगा, घड़ी घड़ी समझाना, वो भी जो समझना ही नहीं चाहता। माफी मुंह से तो मांगता है, हृदय से, सिर्फ अपना स्वार्थ ही चाहता। नहीं चाहिए, भीख अपनेपन की रखो अपना, संबंध, नहीं कोई लालसा। ©mautila registan(Naveen Pandey)"

 White वो जो भय था, अब जी लिया।
जो कुछ भी, नहीं होना चाहिए था,
अच्छा हुआ, वैसा कुछ भी नहीं हुआ।

एक अंधेरी, कैद से, मुक्त हुआ हूं आज।
बहुत दिन बाद, आज थोड़ी खुशी मिली 
मैं जी भर के जी लिया।

अब नहीं पड़ेगा, घड़ी घड़ी समझाना, वो भी
जो समझना ही नहीं चाहता।
माफी मुंह से तो मांगता है, 
हृदय से, सिर्फ अपना स्वार्थ ही चाहता।
नहीं चाहिए, भीख अपनेपन की
रखो अपना, संबंध, नहीं कोई लालसा।

©mautila registan(Naveen Pandey)

White वो जो भय था, अब जी लिया। जो कुछ भी, नहीं होना चाहिए था, अच्छा हुआ, वैसा कुछ भी नहीं हुआ। एक अंधेरी, कैद से, मुक्त हुआ हूं आज। बहुत दिन बाद, आज थोड़ी खुशी मिली मैं जी भर के जी लिया। अब नहीं पड़ेगा, घड़ी घड़ी समझाना, वो भी जो समझना ही नहीं चाहता। माफी मुंह से तो मांगता है, हृदय से, सिर्फ अपना स्वार्थ ही चाहता। नहीं चाहिए, भीख अपनेपन की रखो अपना, संबंध, नहीं कोई लालसा। ©mautila registan(Naveen Pandey)

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