शतरंज का खेल हमे बिलकुल नहीं भाता
रिश्तो मे चाल चलने की कोशिश भी हम बिलकुल नहीं करते
सही को सही ,झूठ को झूठ हम बोलते गये
शायद इसलिये हर कोई हमे बिलकुल नहीं पसंद करते
किसी को अच्छा लगने के लिये झुठे तारीफ के पूल हम नहीं बांधते
सामनेवाले की औकात देखकर ही हम , दोस्ती का हात है फैलाते
हमारी बुराई करने की तनख्वाह हम नही किसी को देते
आशिक है वो, जो मुफ्त मे उनका वक्त जाया है करते
बूराई करणे काम भी वो इमानदारी से है करते
नासमझ है वो , खुद को आईने मे एक बार क्यूँ नहीं देखते
©Ashvini Patil
#Parchhai