heart अधर ढूंढते मुस्कानों को कोलाहल के अंधियारों | हिंदी शायरी Video

"heart अधर ढूंढते मुस्कानों को कोलाहल के अंधियारों में बैठा सोचा करता हूं बस क्या करता इन गलियारों में बातें तब की,जाने कब की भोर कि तो थी कुछ शब की ये मन नई उमंगों के बाने उम्मीदों के ताने सीता है तब तब लगता है मुझमें अब भी ये बचपन जीता है ।। ©Dinesh Paliwal "

heart अधर ढूंढते मुस्कानों को कोलाहल के अंधियारों में बैठा सोचा करता हूं बस क्या करता इन गलियारों में बातें तब की,जाने कब की भोर कि तो थी कुछ शब की ये मन नई उमंगों के बाने उम्मीदों के ताने सीता है तब तब लगता है मुझमें अब भी ये बचपन जीता है ।। ©Dinesh Paliwal

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