इंसान
दुनिया मे किसी जानवर किसी मखलूक़ ने
इंसान का इतना शिकार नही किया
जितना इंसान ने इंसान का क्या है
इंसान ने इंसान को जंगो मे मारा
रिश्तों मे मारा
मुहब्बत मे मारा
धोखे से मारा
ये इंसान इतने रंग बदलता है
के कोई मखलूकु नही बदलती
और ये अपनी ही नस्ल का शिकार करना पसंद करता है
कोई दोस्त के रूप मे दुश्मन है
कोई मुसाफिर के भेस मे लुटेरा है
जो सच्चाई की क़सम खा रहा है वो सच्चाई से ही दूर है
इंसान ने सब बन कर रहना सीखा
एक इंसान ही बन कर रहना मुश्किल रहा
अपने अंदर के जानवर को ज़िबाह करो तो इंसान बन जाओगे
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Golden words 1
©Amir 'Ek Anjaan Shayar'
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