वो तुम हो
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जिसकी सादगी में एक ताज़गी हो अदा और हया से भरी नज़रों में दुआ और दया ख़ास हो
जिसकी होठों की हँसी के लिए हर ख़ुशी कुर्बान हो ख़्वाहिशों के लिए हर पल ख़ुदा मेहरबान हो
जिसके जज़्बातों को समझने के लिए ख़ामोशी एक ज़रिया हो प्रकृति सा सहज और सजग जिसका नज़रिया हो
याद ऐसी जैसे मन में बसा अपने देश का गाँव हो परछाईं जैसे तप्ति धूप में एक छाँव हो
जिसका इस दुनिया में होना ही किसी के लिए मक़सद हो अक़्स में उसकी रूह देती दस्तक हो
मासूमियत और क़ाबिलियत का कोई भी न सानी हो स्पर्श में अपनेपन की निशानी हो
मनीष राज
©Manish Raaj
#वो तुम हो