ये मेरे चेहरे के दरारो से झांकती, जो ज़िन्दगीयां हैं ,
ये सिर्फ मेरी नहीं ,
मैं ज़िनसे भी होकर गुजरी ,
यें उनकी भी बास्तियाँ हैं ...
ये जो पुछते हैं मुझसे कि मेरे उजड़ जाने से क्या होगा ,
कुछ नहीं होगा उनको जो अब यहाँ नहीं रहते ,
पर ज़िनका ठिकाना अब भी यहीं हैं ,
गुंजेगी विरानो में रह रह कर जो , उनकी सिसकियां हैं ...
फिर बसेंगे लोग उजड़ने के लिए ,
मैं देखुंगी तमाशा ,
हजार हाथो से उठाते हुए एक सपने को ,
चार कांधो पे जाते हुए एक हकीकत के लिए ....
©Monika Suman
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