मुक्तक  :- मेरे मन को भाती है उसके मन की चंचलता | हिंदी कविता

"मुक्तक  :- मेरे मन को भाती है उसके मन की चंचलता । फूलो से भी नाजुक है उसके तन की कोमलता । शब्दों में कैसे बयाँ करूँ वो कितनी सुंदर है - यूँ मानों अब देख उसे मुझको मिलती शीतलता ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR"

 मुक्तक  :- 

मेरे मन को भाती है उसके मन की चंचलता ।
फूलो से भी नाजुक है उसके तन की कोमलता ।
शब्दों में कैसे बयाँ करूँ वो कितनी सुंदर है -
यूँ मानों अब देख उसे मुझको मिलती शीतलता ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मुक्तक  :- मेरे मन को भाती है उसके मन की चंचलता । फूलो से भी नाजुक है उसके तन की कोमलता । शब्दों में कैसे बयाँ करूँ वो कितनी सुंदर है - यूँ मानों अब देख उसे मुझको मिलती शीतलता ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मुक्तक  :- चंचल मन


मेरे मन को भाती है उसके मन की चंचलता ।

फूलो से भी नाजुक है उसके तन की कोमलता ।

शब्दों में कैसे बयाँ करूँ वो कितनी सुंदर है -

People who shared love close

More like this

Trending Topic