Village Life खोने से तुम्हें हमेंशा डरता रहा,
दिलों जान से तुमपे मरता रहा।
पर पता चला बाद में,
मैं यूं ही ज़माने से लड़ता रहा। ।
तुम सामने थी,फिर भी मैं सोचता रहा,
काफिर न समझ बैठो तुम,
शायद तभी खुद को रोकता रहा। ।
वज़ह ना जान सका तुम्हारे बिछुड़ने का,
फिर भी मैं खुद को कोसता रहा।
बीती बात बन गई तुम अब तो,
और याद में मैं तेरे घुटता रहा ।
लाख कोशिशें की खुद को समझाने की,
फिर भी वक़्त दर वक़्त मैं टूटता रहा। ।
written by संतोष वर्मा azamgarh वाले
खुद की जुबानी
©Santosh Verma
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