तुम आना कुछ इस तरह
जैसे सर्दियों में धूप आती है खिड़कियों से...
पसीने से भींगे शरीर को हवा छू जाती है...
तुम आना कुछ इस तरह
जैसे पतझड़ के बाद बसंत आता है...
किसी प्यासे को पानी मिल जाता है...
तुम आना कुछ इस तरह
जैसे नदी मिलती है सागर से...
बारिश होती है सावन में...
तुम आना कुछ इस तरह
जैसे अंधेरों के बीच रोशनी नजर आती है।