शब ये आखिर जा रही है तो कहीं तो जाएगी,
हम भी चलते हैं नहीं तो दोपहर हो जाएगी !
तुम निभाओ साथ गर तो मुख़्तलिफ़ इक बात हो,
ज़िन्दगी तो यूँ भी होनी है बसर हो जाएगी !
मुतमईन था मैं कि बाज़ी जीत कर ले जाऊंगा,
क्या खबर थी मात 'अहमद' की पेशतर हो जाएगी !
राह तन्हा जानकर क्यूं रुक गए चलते कदम,
चलते रहिए तो ज़मीं भी हमसफर हो जाएगी
©Jay Piprotar
#cycle