*ग़ज़ल*
बिक रहा है ईमान लोगे क्या ?
आप सस्ता समान लोगे क्या ?
झूठ की बस्तियों में खाली है....
एक सच का मकान, लोगे क्या?
हम दरख़्तों का जिगर रखते हैँ..
सब्र का इम्तिहान, लोगे क्या ?
झूठ पर मुस्तगीस के हमको..
यूँ खतावार मान लोगे क्या ?
कुछ कहूँ मैं अगर सफ़ाई में...
आप मेरा बयान लोगे क्या ?
जो भी मिलता है सलाह देता है
यार बच्चे की जान लोगे क्या ?
जिनकी आदत है तोडना वादे..
फिर उन्ही से ज़ुबान लोगे क्या ?
'रिक़्त' ये भी अज़ब तिज़ारत है...
फायदे में..... ज़ियान लोगे क्या ?
©Sanjeev Shukla
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